हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
**************************************
चल रहे वक्त के साथ धरती गगन,
सृष्टि की बन धुरी जिन्दगी पल रही।
चाल कायम रहे कुदरती देन की,
कह सकें सब यहाँ जिन्दगी चल रही॥
चल रहे…
वक्त,धरती,गगन,कुदरती देन हैं,
लोग समझें न पर बस इसी बात को।
सबकी अपनी खुशी,सुख सभी का मगर,
सृष्टि के बिन यहां कैसे हालात हों।
थम गई चाल जो बस किसी एक की,
फिर न कह पाएंगे जिन्दगी चल रही।
चल रहे…॥
जानते हैं सभी सृष्टि क्या चीज है,
बात करते मगर हो रहे कम जतन,
कट रहे वृक्ष सब,नीर तक घट रहा,
बस जमीं का गगन से रहे संतुलन।
सबको रहना यहीं, जिन्दगी है यहीं,
सब ये कहते रहें,जिन्दगी चल रही।
चल रहे….॥
अग्रजों से हमें सब भला ही मिला,
हर अनुज के लिए क्या बचा है भला।
ज्ञान तो सबको है,पर न करते जतन,
इतना ही सोचते क्या लिया क्या दिया।
अब तो सोचो जरा अगली पीढ़ी की सब,
वो भी तो कह सकें जिन्दगी चल रही।
चल रहे…॥
परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।