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भेदभाव

वाणी वर्मा कर्ण
मोरंग(बिराट नगर)
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जब प्रकृति किसी से
भेदभाव नही करती,
कुछ देने से पहले
मरने से पहले,
नहीं पूछती जात-धर्म
यहां तक कि महामारी भी,
नहीं पहचानती जात-धर्म।
पेशा-व्यवसाय
अमीर-गरीब,
ऐसे ही हैं भगवान
उनके घर सब हैं जाते,
अपनी मन्नत मांगते
पापी हो या सज्जन,
कोई भेदभाव नहीं।
ये हम मानव ही हैं जो
भेदभाव की राजनीति हैं करते,
दिल से दिल को दूर हैं करते
मानव से मानव को दूर हैं करते।
क्या सुना कभी फलां कुएँ ने
पानी देने से किया इनकार,
जब प्रकृति है भेदभाव रहित
हम मानव ही हैं कसूरवार,
हमें समझाती है बार-बार।
हर मानव है एक समान,
चाहे फर्क हो विचार॥