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सपना

सुरेन्द्र सिंह राजपूत हमसफ़र
देवास (मध्यप्रदेश)
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फैक्ट्री की नौकरी में रमेश का मन बिल्कुल नहीं लगता था लेकिन घर की परिस्थिति और मज़बूरी के कारण उसे ये नौकरी करना बहुत ज़रूरी था। उसका शुरू से सपना था कि उसकी शासकीय शिक्षक की नौकरी हो और वह किसी विद्यालय में बच्चों को अच्छी शिक्षा और संस्कार दे। “जब व्यक्ति कोई लक्ष्य बना लेता है और जी-जान से,कड़ी मेहनत से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करता है तो भाग्य भी उसे वह चीज़ देने पर विवश हो जाता है”, ऐसा ही सपना था रमेश का।
सपने के बारे में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ससाहब ने कहा है कि-
“सपना वह नहीं जो आप नींद लगने पर देखते हैं,सपना तो वह है जो आपको सोने ही नहीं देता है।” अर्थात आपको हर समय सोते-जागते उठते-बैठते केवल अपना लक्ष्य दिखाई देता है।
रमेश फैक्ट्री की नौकरी तो करता था लेकिन हर समय उसके मन में अपना लक्ष्य घूमता रहता था। वह समय निकाल कर प्रतिदिन शासकीय लायब्रेरी जाता था। वहाँ समाचार पत्रों से जानकारी जुटाकर शिक्षक के पद के लिए आवेदन करता रहता था। उसकी परीक्षा और साक्षात्कार संबंधी किताबों की पढ़ाई हमेशा करता रहता था। उसने कहीं पढ़ा था कि “कभी-कभी गुच्छे की आख़री चाबी से भी ताला खुल जाता है।” अर्थात “अपनी सोच को हमेशा सकारात्मक रखकर प्रयत्न करते रहना चाहिए।”
कल रमेश की शिक्षक पद की परीक्षा थी और आज वह कारखाने की सेकन्ड शिफ़्ट (शाम ४ से रात १२ बजे ) में डयूटी पर था। वह अपनी मशीन का काम जल्दी निपटाकर वहीं बैठकर पढ़ाई कर रहा था। उसके दोस्तों ने उसका मज़ाक उढ़ाते हुए कहा-क्यों इतनी मेहनत कर रहा है जो भाग्य में लिखा था वह हो गया,वैसे ही सरकारी नौकरी की उम्र के आखिरी साल में चल रहा है,आराम से अपनी नौकरी कर,लेकिन रमेश अपनी धुन का पक्का था। उसे ऐसी बातों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता था, वह कर्म में विश्वास रखता था।
आज जैसे वह फैक्ट्री पहुँचा तो वही दोस्त हाथ में अखबार लिए रमेश का इंतज़ार कर रहा था। उसने ख़ुशी से झूमते हुए रमेश को उसके चयन हो जाने की सबसे पहले ख़बर और बधाई दी। उसने खुशी से रमेश को गले लगा लिया और कहा-“तू सही कहता था यार ‘मेहनत करने वालों की भाग्य भी मदद करता है।”

परिचय-सुरेन्द्र सिंह राजपूत का साहित्यिक उपनाम ‘हमसफ़र’ है। २६ सितम्बर १९६४ को सीहोर (मध्यप्रदेश) में आपका जन्म हुआ है। वर्तमान में मक्सी रोड देवास (मध्यप्रदेश) स्थित आवास नगर में स्थाई रूप से बसे हुए हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का रखते हैं। मध्यप्रदेश के वासी श्री राजपूत की शिक्षा-बी.कॉम. एवं तकनीकी शिक्षा(आई.टी.आई.) है।कार्यक्षेत्र-शासकीय नौकरी (उज्जैन) है। सामाजिक गतिविधि में देवास में कुछ संस्थाओं में पद का निर्वहन कर रहे हैं। आप राष्ट्र चिन्तन एवं देशहित में काव्य लेखन सहित महाविद्यालय में विद्यार्थियों को सद्कार्यों के लिए प्रेरित-उत्साहित करते हैं। लेखन विधा-व्यंग्य,गीत,लेख,मुक्तक तथा लघुकथा है। १० साझा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है तो अनेक रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में भी जारी है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अनेक साहित्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। इसमें मुख्य-डॉ.कविता किरण सम्मान-२०१६, ‘आगमन’ सम्मान-२०१५,स्वतंत्र सम्मान-२०१७ और साहित्य सृजन सम्मान-२०१८( नेपाल)हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्य लेखन से प्राप्त अनेक सम्मान,आकाशवाणी इन्दौर पर रचना पाठ व न्यूज़ चैनल पर प्रसारित ‘कवि दरबार’ में प्रस्तुति है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और राष्ट्र की प्रगति यानि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त,सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एवं कवि गोपालदास ‘नीरज’ हैं। प्रेरणा पुंज-सर्वप्रथम माँ वीणा वादिनी की कृपा और डॉ.कविता किरण,शशिकान्त यादव सहित अनेक क़लमकार हैं। विशेषज्ञता-सरल,सहज राष्ट्र के लिए समर्पित और अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिये जुनूनी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“माँ और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती है,हमें अपनी मातृभाषा हिन्दी और मातृभूमि भारत के लिए तन-मन-धन से सपर्पित रहना चाहिए।”

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