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आचार्यश्री की महिमा

संजय जैन 
मुम्बई(महाराष्ट्र)

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गुरु की महिमा,
गुरु ही जाने
भक्त उन्हें तो,
भगवान पुकारे
जो भी श्रध्दा,
भाव से पुकारे
दर्शन वो सब पावे,
ऐसे आचार्यश्री की
जय-जय बोलो।
मुक्ति के पथ को,
खुद समझ लो॥

कितने पावन,
चरण हैं उनके
जहाँ-जहाँ पड़ते,
तीर्थ क्षैत्र वो बनते
ऐसे ज्ञान के सागर को,
सब श्रध्दा से
वंदन हैं करते
ऐसे आचार्यश्री की,
जय-जय बोलो।
मुक्ति के पथ को,
खुद समझ लो॥

क्षमा,सुधा और,
योगसागर जैसे
प्रतिभाशाली शिष्य है,
गुरुवर के
चारों दिशाओं में,
ये बिखरे हैं
धर्म प्रभावना ये,
बड़ा रहे है
ऐसे आचार्यश्री की,
जय-जय बोलो।
मुक्ति के पथ को,
खुद समझ लो॥

जिन वाणी के,
प्राण हैं गुरुवर
ज्ञान की गंगा,
बहती मुख से
जो भी शरण,
इनकी है आता
धर्म मार्ग को,
वो समझ जाता
ऐसे आचार्यश्री की,
जय-जय बोलो।
मुक्ति के पथ को,
खुद समझ लो॥

बुन्देलखण्ड की,
जान हैं गुरुवर
घर-घर में,
बसते हैं मुनिवर
धर्म प्रभावना बहाते,
शान बुन्देलखण्ड की कहलाते
मोक्ष मार्ग का,
पथ दिखला कर
आत्म कल्याण के,
पथ पर चलाते
ऐसे आचार्यश्री की,
जय-जय बोलो।
मुक्ति के पथ को,
खुद समझ लो॥

कितने पशुओं की,
हत्या रुकवाई
जीव दया केंद्र,
अनेक खुलवाए
स्वावलंबी बनाने को,
कितने हस्तकरघा लगवाए
इंसानों के प्राण बचाने,
भाग्योदय आदि खुलवाए
ऐसे आचार्यश्री की,
जय-जय बोलो।
मुक्ति के पथ को,
खुद समझ लो॥

शिक्षा-दीक्षा के लिए,
ब्रह्मचारी आश्रम और
प्रतिभा स्थली खुलवाए,
ज्ञान-ध्यान पाकर के
बने तपस्वी और उच्चाधिकारी,
भ्रष्टाचार को ये
लोग मिटाए,
महावीर राज ये
फिर से बसाए,
ऐसे आचार्यश्री की,
जय-जय बोलो।
मुक्ति के पथ को,
खुद समझ लो॥

परिचय– संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।