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अलंकृत…

एम.एल. नत्थानी
रायपुर(छत्तीसगढ़)
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तुम विग्रह विच्छेद रचो,
मैं संधि समास कहूंगा
दाम्पत्य के परिणय सूत्र,
में नया इतिहास रचूंगा।

चंदन की खुशबू हवाओं,
में फिर महकने लगी है
अमृत रस बरसाती जैसे,
तृष्णा भी दहकने लगी है।

नवबसंत ने मुस्करा कर,
मौन आमंत्रण दिया है।
नि:शब्द निर्सग उल्लास,
ने स्व नियंत्रण किया