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जल ही कल है

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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जल ही कल….

जल ही कल है
जीवन पल-पल है,
बहती नदिया में
अमृत का बल है।

कहीं तालाबों में
कहीं झरनों में,
स्वर प्राण वायु का
बहता कल-कल है।

मेघों में राग है
पतझड़ अनुराग है,
हरित हो वसुंधरा
जल से ही भाग है।

जन्तु या वनस्पति
है जल ही तो गति,
धरोहर है प्राणों की
भविष्य का फल है।

संभालो विरासत ये,
आफ़त में कल है।
एक-एक बूंद में,
प्राणों को बल है॥