कुल पृष्ठ दर्शन : 265

हम हैं राही प्रेम डगर के

कवि योगेन्द्र पांडेय
देवरिया (उत्तरप्रदेश)
*****************************************

ना ऊंच-नीच, ना जात पात का
अपना कोई बहाना रे,
हम हैं राही प्रेम डगर के
दिल है मेरा ठिकाना रे।

बस ढाई आखर के ऊपर
है टिका हुआ यह जग सारा,
जिसने जगती को जीता है
वो प्रेमपाश से है हारा,
इस माया-मोह की दुनिया में
सबको है आना जाना रे,
हम हैं राही प्रेम डगर के…
दिल है मेरा ठिकाना रे।

जिसको अभिमान हुआ बल का
वो पल भर में बलहीन हुआ,
जो महलों का था राजकुंवर
एक दिन वह भी गमगीन हुआ,
सब-कुछ जब छोड़ के जाना है
तो फिर किसपे इतराना रे,
हम हैं राही प्रेम डगर के…
दिल है मेरा ठिकाना रे।

जिसका जितना पात्र रहा
उतना वह प्रेम बटोर सका,
जिसकी चादर जितनी लम्बी
उतना वह तन पे ओढ़ सका,
हम तो मस्त फ़कीर यहां
हमको है अलख जगाना रे।
हम हैं राही प्रेम डगर के…,
दिल है मेरा ठिकाना रे॥