कुल पृष्ठ दर्शन : 303

You are currently viewing दीपों की कतारें

दीपों की कतारें

डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
******************************

राम राज…

सजी दीपों की कतारें,
है रंगीन दिवाली आई
घर-घर में जले दीप,
जिधर देखो खुशी छाई।

चाँद-तारों की बारात सजे,
धरा आज ऐसे जगमगाए
स्वर्ग नीचे उतर आया
चाँद-तारे भी शरमाए।

कहीं सजती है रंगोली,
रंगीन तोरण मन भाए
लक्ष्मी-गणेश हुए पूजित,
शोभित हैं फूल मालाएँ।

जलते हैं दीया-बाती,
चैन आए ना पतंगों को
खुश हैं सब देख नजारे,
छुपा पाए ना उमंगों को।

पहनकर नई-नई पोशाकें,
मगन हो झूम रही बालाएँ
भरी मिष्ठानों से हथेली,
पकवानों की महक आए।

शोर करते कहीं पटाखे,
छूट रही हैं फुलझड़ियाँ
चहुँओर है दिखे खुशहाली,
लगे राम-राज की घड़ियाँ।

दूर करें तम, गम का,
मन में उजियारा फैलाएँ।
महकता रहे मन-उपवन,
हम दिवाली यूँ ही मनाएँ॥