हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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हर एक पल तू मेरे साथ चलती है,
तुम जिन्दगी भी तुम मेरी खुशी भी हो
तेरे बिना मैं अधूरा हूँ,
मेरे बिना तू अधूरी है
क्योंकि, धड़कन ही जीवन है।
वह चलती रहे तो जीवन चलेगा,
उसके रुकने से सब कुछ रुक जाएगा
यह शरीर उसके बिना अधूरा है,
क्योंकि, धड़कन है तो सब जहान है
यह नहीं तो सब श्मशान है।
हाड़-माँस का यह पुतला है शरीर,
धड़कन से ही जिन्दगी चलती
इसके चलने से जीवन चलेगा,
इसके रुकने से सब ठहर जाएगा।
हम सब यह मेहमान हैं चार दिन के,
पर सोचते हैं बरसों ठहर जाने की
आसमान में ऊँची उड़ान से कुछ हासिल नहीं होगा,
अरे ठहर जा तू राही।
धड़कनों की यह तरंगें,
जीवन में कितना साथ देगी
तू यहाँ चार दिन का मेहमान है,
फिर क्यों सोचता है बरसों की ?
कब क्या हो जाए, कोई कह नहीं सकता,
क्योंकि धड़कन ही जीवन है।
वह चलती रहे तो जीवन चलेगा,
इसलिए कर्म अच्छे करते रहो॥