राधा गोयल
नई दिल्ली
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दुष्कर्मियों को सजा नहीं मिलती,
न्याय के हाथ लड़खड़ाते हैं
‘चीखती है कलम, कहती है कलम’,
मैं सिर्फ़ किस्से या कहानी के लिए ही तो नहीं
तुम्हारे हाथ में हूँ, इंसाफ दिलाने के लिए,
गलत लोगों को सजा दिलाने के लिए
तो तुम्हारे हाथ सच क्यों नहीं लिखते ?
हाय रे न्याय लिखने वाले कैसे हैं ?
सत्य का साथ नहीं देते हैं
सच्चा जेलों में बंद है रहता,
गुण्डा बेखौफ घूमता रहता।
न्यायाधीशों से न्याय की गुहार मत करना,
इनसे अब आस लगाने से कुछ नहीं होगा
सबको मालूम है कि इनकी हकीकत क्या है ?
सभी बेअसर हैं और कानून लचर है,
मुफ्त का माल उड़ाते रहते हैं डाकू
अब जनता कानून अपने हाथ में लेगी,
खतावार को खता की सजा दे के दम लेगी।
सुन लो जनता का न्याय,
बलात्कारियों को नंगा करके उल्टा लटका दो
चमड़ी उतारो, मगर जान से नहीं मारो,
थोड़ा-थोड़ा काटो और जख्मों पर नमक भी छिड़को
इनके हिमायतियों को भी नहीं बख्शो,
बचाने आएँ तो तस्वीर खींचो और सोशल मीडिया पर डालो
ताकि जनता जान सके कि ऐसे दरिन्दों के समर्थन में कौन उतरा है।
लटका रहने दो बलात्कारी को, और तड़पने दो,
अपनी रक्षा के लिए चौकन्ने रहो
न्याय की देवी कुछ नहीं करती है,
उसकी आँखों पर तो बंधी पट्टी है
क्या कभी न्याय होते देखा है ?
दोषी को ‘सजा’ पाते देखा है ?
निरपराधी को सजा मिलती है,
दोषी कुछ दे के छूट जाता है
खुद को अब अबला समझना छोड़ो,
जूडो, कराटे, मार्शल आर्ट भी सीखो।
सिर्फ पढ़ाई ही काम नहीं आएगी,
आत्मरक्षा के उपाय भी सीखो॥