प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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गुरु पूर्णिमा (२१ जुलाई) विशेष…
गुरु वचन ज्ञान-रस पागे,
स्व-शिष्यों को तारन हित, वे अपनी सुविधा त्यागे।
करती शुभ-शब्दों से वंदन,
वे हैं शिव मस्तक का चंदन
काम, क्रोध, मोह, मद, मत्सर,
गुरुदेव कृपा से भागे।
गुरु वचन ज्ञान-रस पागे…
मेरी भूल बिसरा देते हैं,
ज्ञान का वो पलना देते हैं
प्रेम से झूल सत्य अपनाऊँ,
विषय भोग सब दागे।
गुरु वचन ज्ञान-रस पागे…
गुरु बिन कौन सहाई जग में,
भटक मरे नर इस जग मग में
प्रभु-प्रीतम का नाम रटाएँ,
सोया भाग फिर जागे।
गुरु वचन ज्ञान-रस पागे…
नाम दिया मुख शिव सुंदर का,
गया क्लेश सभी अंदर का
ममता माँ-सी, पिता तुल्य हैं,
सब फीका गुरुवर आगे।
गुरु वचन ज्ञान-रस पागे…
गुरुवर संबल सदा रहा है,
दुविधाओं को सदा कहा है
सही राह दृष्टव्य हुई तब,
सभी सरल शुभ लागे।
गुरु वचन ज्ञान-रस पागे।
स्व-शिष्यों को तारन हित,
वे अपनी सुविधा त्यागे।
गुरु वचन ज्ञान-रस पागे…॥
(इक दृष्टि यहाँ भी:पागे=सिक्त, डूबे हुए,
मत्सर=द्वेष, दागे=जलाना, जग-मग= चकाचौंध, जग=संसार, मग=मार्ग)