डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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देर करते हो क्यों बुलाने में,
क्या मिला तुमको रूठ जाने में।
काली जुल्फों के हम असीर हुए,
दिल लगाया है कैदखाने में।
हक़ व बातिल की जंग में मुझको,
डर नहीं मुझको जां से जाने में।
आज आँखें तुम्हारी क्यों नम हैं,
क्या है ग़म मुझको भूल जाने में।
तुम ज़रा ग़ौर से पढ़ो इसको,
कुछ अहम राज़ हैं फ़साने में।
वो पहले से ही हार बैठा है,
क्या मिलेगा उसे हराने में।
दिल की मासूम है ‘शाहीन’ बहुत,
दु:ख मिलेगा उसे सताने में॥