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हो ज़िंदगी इश्क़ की

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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है इक हसीना परी-सी दिखे जो, मलिका वही हुस्न की
वो चाॅंद मेरा चकोरा बनूं मैं, हो ज़िंदगी इश्क़ की।

जुल्फ़ें घटा-सी नजर है नशेमन, होंठ हैं पंखुड़ियाँ गुल की
साकी न पैमाना उसको समझना, वो है फिरदौस दिल की
हर दिल अजीज़ वो नाजनीना गुल की तरह गुलाबी,
रुसवा न हो चाॅंद मेरा किसी पल, इबादत यही इश्क़ की।
है इक हसीना…

देखा नहीं है कभी रूबरू दिल लेकिन मिले प्यार से,
देखें कभी तो सजा लें तमन्ना हम उसके दीदार से
फ़ुरसत में कुदरत ने खुद ही सजाया, जागीर है कुदरती,
बनके दिलों में मिटती न हसरत, हरदम रही इश्क़ की।
है इक हसीना…

मंजर न दर कोई होगा ज़मीं पर, जिससे सजे आरज़ू,
होती तमन्ना मगर कब दिलों की सजती रहे जुस्तज़ू।
ऐ काश! दिल की तमन्ना सजे जो बनी है इबादत-सी,
करती इनायत भी खूबसूरत, वज़ू भी सजी इश्क़ की।
है इक हसीना…॥

परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।