अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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जो हैं हमारे,
हम उनके हों लें
ये सच्ची होली।
जिसको है बैर,
उससे दूरी भली
करो न संग।
रंग प्रेम का,
हर मन चढ़ाना
मन हो साफ।
खेलो यूँ होली,
खिल जाए ये दिल
जीवन साथी।
मनाएँ पर्व,
झूमें सब दिल से
होता है गर्व।
सूखा न रहे,
रंग दो आज इन्हें
रंगों का ताज।
गोरी जो मिले,
रंगना रूह उसकी
भूले न मन।
बनी एकता,
भले रंग अलग
मन हो एक।
फागुन पर्व,
स्नेह भरा उत्सव
खूब है दुलार।
रंग-ग़ुलाल,
भुलाता है शिकवे
न हो मलाल।
मन को रंगो,
तन बस जरिया
सदा ही याद।
है ये उत्सव,
आँगन हो रंगीला
रंगो मन को।
छूटे न कोई,
गुब्बारे भर जश्न
सब अपने।
ढोल-मंजीरा,
हर दुःख भुला दो
ऐसा हो रंग।
निकले टोली,
रंगी हो झोलियाँ
ऐसी हो होली॥