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मन में बसा कर

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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मैं बढ़ रहा,
आगे लक्ष्य पर निशाना
साधते हुए मैं बढ़ रहा,
गुरु की मूरत मन बसा कर।

मैं इतना बड़ा नहीं,
मैं दीन-हीन कैसे शिक्षा ग्रहण करूँ ?
पर कोशिश तो करना पड़ती है,
इसलिए गुरु की मूरत मन में बसा कर मैं बढ़ रहा।

मन की एकाग्रता को लिए,
मुझे गुरु कभी-न-कभी जरूर मिलेंगे
तभी तो गुरु की मूरत मन में बसा कर,
मैं बढ़ रहा आगे।

मेरे अंदर घमंड नहीं,
मोह नहीं मेरे अंदर, मैं बढ़ रहा आगे
मैं गुरु को क्या दूंगा!, मैं एकलव्य नहीं,
फिर भी मैं गुरु की मूरत मन में बसा कर
मैं बढ़ रहा आगे।

लक्ष्य पर निशाना,
साधते मैं बढ़ रहा आगे।
गुरु की मूरत मन में बसा कर,
मैं बढ़ रहा आगे॥