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तलाशने होंगे स्वतंत्रता के अर्थ

संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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१५ अगस्त विशेष…

जब गुलामी की जंजीरों में जकड़ा अपना था वतन,
चहुँओर अत्याचारों के सिलसिले थे उजड़ा-उजड़ा था चमन
अपनी ही प्रजा का दमन था छीन चुका था सबका चैन-अमन,
हवालदिल थी भारत माता परतंत्र का सिर चढ़कर था दमन।

वीर मंगल पांडे की शहादत से क्रांति का चल पड़ा था सिलसिला,
सुलग रही थी दबी चिंगारियाँ, वहीं से भड़क रहा था जलजला
स्वतंत्रता यज्ञ में अविरत पड़ता रहा प्राणों की आहुतियों का सिलसिला,
तब जाकर पंद्रह अगस्त क़ो मुश्किलों से स्वतंत्रता का फल मिला।

कितने-कितने बलिदान हुए, लाखों प्राणों के इम्तिहान हुए,
बहुत महंगी थी आजादी, जलकर खाक लाखों के अरमान हुए
प्राण-प्राण के होम हुए वीरों के संसार बेची राख़, अंतर्धान हुए,
तब जाकर आज के दिन भारत माता ने स्वतंत्रता के संधान किए।

अब जब स्वतंत्रता कमाने वाली आखिरी पीढ़ी ले रही अंतिम श्वाँस है,
क्या नयी पीढ़ी क़ो स्वतंत्रता के उठाए कष्टों का क्या जरा भी होश है ?
सिलसिले बहुत बिगड़ रहे हैं, नवयुवा अपने ही मद में मदहोश है,
जहाँ देखो वहाँ चल रहा नित उश्रुखलता का ही बड़ा जोश है।

सबने अपने-अपने स्वार्थ के अर्थ निकाले हैं आजादी के,
कई कपड़े उतारने क़ो आजादी कह रहे, जो लक्षण है बर्बादी के
अमर्यादित स्वच्छन्दता, अविवेक, भ्रष्टता ये सारे लक्षण है उन्मादी के,
क्या यही उम्मीद थी बलिदानियों की जिन्होंने सौंप दी स्वतंत्रता बिन शर्त के।

अंधाधुंध दोहन मचा है सब मिलकर भारतमाता क़ो कर रहे तार-तार,
नेताओं, प्रजा की उल-जलूल हरकतों से माँ भारती के हुए प्राण बेजार
ना तिरंगे का होश है, मचे स्वार्थ के पाश, क्या यही स्वतंत्रता का है अभिसार ?
भ्रष्टों का नंगा नाच मचा है, चढ़ी संस्कृति के विकृतिकरण को है धार।

अपने-अपने झंडे बुलंद देखकर सिहर उठा है प्राणप्रिय तिरंगा,
बेसुरे सुरों के कोलाहल में खोयी राष्ट्रभाषा से विहल है तिरंगा
अभी तक देश की अपनी हिंदी जुबान न होने से विकल है तिरंगा,
अपने ही अंदर मचे घमासान से महसूस करता विफल है तिरंगा।

स्वतंत्रता के मायनों क़ो अब नये सिरे से समझना होगा,
स्वतंत्रता के अनमोल मूल्यों को अब नये सिरे से चुनना होगा।
देश की प्रकृति, पनपती विकृतियों को अब अब नये सिरे से तौलना होगा,
अब के पंद्रह अगस्त पर मित्रों, आजादी में नये सिरे से नवप्राणों क़ो घोलना होगा॥

परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।