डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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१५ अगस्त विशेष…
गुफ्तगू है करता बादल से,
खुद पर करता है अभिमान
गर्व से तिरंगा फूला न समाता,
करता वीरों का वो गुणगान।
लहराता हूँ नील गगन में,
हिन्द का हूँ मैं गौरव, शान
बीती गाथा याद दिलाता, जो
कर गए खुशी से शीश कुर्बान।
कितना पावन था उनका मन,
किया तन-मन-धन समर्पण
लहू उनका जो रंग लाया,
मेरा मन फूला ना समाया।
देखकर मुझको सरहद पर,
लहू में उठ आता है उफान
दस-दस को एक ने मारा,
वीरांगनाओं के थे वीर जवान।
दांत दुश्मन के खट्टे कर गए,
जब तक थे देह में प्राण
धन्य हुआ था अपना हिन्द,
धन्य हुए थे, वे वीर जवान।
छुप-छुप कर करता साजिश,
गद्दारों की गंदी हरकत है
छलिया, कपटी, आतंकी से,
मन थोड़ा-थोड़ा आहत है।
मन ही मन जो करते द्वेष,
बदल-बदल कर अपना भेष।
जी चाहे कहीं और बसे जा,
शौक से छोड़ दे मेरा देश॥