उर्मिला कुमारी ‘साईप्रीत’
कटनी (मध्यप्रदेश )
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कुछ लिफाफे लेकर डाकिया मेरे घर के गेट पर आता है,
बेल बजी तो दस्तक, डाकिया बाबू डाक डाल जाता है…।
मेरी निगाहें इन चंद लिफाफों पर जैसे पड़ी, दिल कहता है,
धक-धक दिल की धड़कन भी,
अजीब हलचल करता है…।
जैसे ही पहला लिफाफा खुला मैसेज बहुत अच्छा लगा है,
भीतर जब अंत तक पड़ा तो बेटे ने ‘लव यू माँ’ लिखा है…।
दूसरा लिफाफा भी बहुत अच्छा लगा, पर कोई संदेश छिपा है,
‘माँ मैं अच्छी हूँ, चिंता मत करना आई मिस यू माँ’ लिखा है…।
तीसरे लिफाफे ने जैसे ही मुँह खोला, पति परमेश्वर का खत है,
‘मैं चार दिवस में घर आ रहा हूँ, दस्तक-दरवाजे पर पति खड़ा है…।
अजीब दास्तानें जिंदगी की अब घर अकेले रहना पड़ा है,
बच्चों की शिक्षा पति के काम ने घर को कई हिस्से में बांटा है…।
‘उर’ ने इन सबको अपने स्नेह की डोर से बांध रखा है,
अपनेपन के भाव से अपना ऊँचा दायरा किया है…॥