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मन है पंछी

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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मन तो है एक ऐसा पंछी,
पंख बिना उड़ता रहता है।
लाख कहें मन को हम पागल,
पर मानव मन की सुनता है॥

मन में हों जब अटल इरादे,
फिर बाधाएं कितनी आयें,
टस से मस नहीं होता मनवा,
बादल-बिजली खूब डरायें।
मन-सा साथी साथ चले जब,
मंजिल के सपने बुनता है॥
पर मानव मन…

मन है चेतनता का दरपन,
मन से ही तो जग जीता है
मन के दुखद विचारों से ही,
मन हारा तो जग रीता है।
मन-सागर में मंथन कर नर,
शुचिता के मोती चुनता है॥
पर मानव मन…

मन की गति किसने है जानी,
दसों दिशा में उड़ता-फिरता
लेकिन जिसने कसकर पकड़ा,
देखो फिर ये नहीं छिटकता।
जो भी निश्छल भाव दिखाये,
वहीं समर्पण बन झुकता है॥
पर मानव मन…।

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।