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अंतर्मन को नहीं जगा पा रहा

कल्याण सिंह राजपूत ‘केसर’
देवास (मध्यप्रदेश)
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हर घर की दहलीज पर उमंग
और खुशियों का दीया जल रहा है
मैं तो दीया हूँ, खुद जलकर सदियों से,
अंधियारे को भगाता रहा है।

मानव के अंतर्मन की दहलीज पर, घोर अंधियारा छा रहा है
उसके अंतर्मन को नहीं जगा पा रहा हूँ,
हर बार मानव बनाने का प्रयास कर रहा हूँ।

मानव तो स्वार्थ-मोह के मायाजाल में उलझ रहा है,
जीवन के हर मोड़ पर।
फिर अकेला ही है मानव तू,
ऐसा अहसास ‘केसर’ क्यों हो रहा है ?