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खिलखिलाती वादियाँ

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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चल पड़ी चुपचाप सन-सन-सन हवा
डालियों को यों चिढ़ाने-सी लगी,
आँख की पुतली अरे खोलो जरा
हिल कली को यों जगाने-सी लगी।

पत्तियों ने चुटकियाँ झट दी बजा
डालियाँ कुछ डुलमुलाने-सी लगी,
किस परम आनंद-निधि के चरण पर,
विश्व साँसें गीत गाने सी लगीं।

जग उठा तरु-वृंद सुन यह घोषणा,
रश्मियाँ कुछ झिलमिलाने-सी लगीं।
हो रहे जीवंत सारे चर-अचर,
वादियाँ अब खिलखिलाने-सी लगी॥