कुमारी ऋतंभरा
मुजफ्फरपुर (बिहार)
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अब छोड़ दो समाज की पुरानी नीतियाँ,
भुला दो सारी पुरानी कहानियाँ
अब खत्म करो पुरानी रीतियाँ,
अब है चुनौतियाँ, पुरानी कुरीतियाँ
अब तुम बस अपने राष्ट्र के लिए श्रृंगार करो,
आगे बढ़ो नारी, आगे बढ़ो
तुम सदैव आगे बढ़ो।
छोड़ दो अश्रु धारा को,
टूटो नहीं तुम दिल से
अपने मन के सारे दुःख दर्द को दूर करो,
हिम्मत से खुद को संभालो
कोई नहीं सुनेगा तुम्हारी दास्तां,
क्यों पुकारती हो, क्यों गुहार करती हो
कोई भी दर्द, पुकार, गुहार से दास्तां तुम्हारी नहीं सुनेगा,
अब बन्द करो पुकार, गुहार करना
हे राष्ट्र की नारी कामना करो,
हे किशोरी कामना करो
जागो उठो, खुद को संभालो, मजबूत करो
तुम सदैव आगे बढ़ो।
तुम्हारी हिम्मत से ही रानी जैसी दुर्गा श्री बनी,
देश की झांसी की रानी की अद्भुत कहानी बनी
तुम ही तो आजाद देश की रवानियाँ हो,
अब सूर्य-चंद्र में भी तुम ही रिद्धी- सिद्धी कर रही हो
तुम सदैव आगे बढ़ो।
आकाश हो या पाताल सब जगह, ढाल बन खड़ी है देश की नारियाँ
हे नारी तुम जन्म आनंद हो,
शोक के लिए नहीं बनी
तुम सदैव आगे बढ़ो, स्वतंत्र योजना करो,
तोड़ दो सारी बेड़ियाँ
मन से मजबूत बनो।
देश में आगे बढ़ो,
तुम सदैव आगे बढ़ो॥
