सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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आया मौसम लगन का
नित-नित होता ब्याह,
कहीं सगाई, कहीं है हल्दी
और कहीं करना है भोज।
देख वहाँ की रौनक मन में
मेरे उठते बहुत विचार,
इतना पैसा फूँक रहे क्यों ?
कम में क्यों नहीं करते काज।
जिनके पास है दौलत अंधी
उनकी नहीं मैं करती बात,
पर जो अंधी दौड़ में दौड़ें
सबक उन्हें मैं देती आज।
चाहत को निज बल से तौलें
सब नहीं होते एक समान,
अपनी आमदनी को देखें
निर्मम है यह बहुत समाज।
आज आपके बहुत सगे हैं,
मुश्किल में जब होंगे आप।
यही आपको शिक्षा देगें,
बड़े ख़्वाब और बड़े थे नाज़॥
