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ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता विनोद कुमार शुक्ल नहीं रहे

रायपुर (छग)।

प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन हो गया। वह 88 साल के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे। निधन पर अनेक साहित्यिक संस्थाओं की तरफ से श्रद्धांजली अर्पित की गई है।
जानकारी के अनुसार रायपुर के एम्स में उन्होंने आखिरी सांस ली। मंगलवार की शाम को एम्स प्रशासन ने उनके निधन की जानकारी दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर दुख जताया और कहा कि ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात लेखक विनोद कुमार शुक्ल जी के निधन से अत्यंत दु:ख हुआ है। हिन्दी साहित्य जगत में अपने अमूल्य योगदान के लिए वे हमेशा स्मरणीय रहेंगे। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं। ॐ शांति।
साहित्य अकादमी मप्र से पुरस्कृत लोकप्रिय मंच हिंदीभाषाडॉटकॉम परिवार भी श्रद्धासुमन अर्पित करता है।
ज्ञात हो कि १ जनवरी १९३७ को राजनांदगांव में जन्मे विनोद शुक्ल समकालीन हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में गिने जाते थे। श्री शुक्ल ने जबलपुर कृषि विवि से उच्च शिक्षा हासिल की थी। ‘लगभग जयहिन्द’, ‘वह आदमी नया गरम कोट पहिनकर चला गया विचार की तरह’, ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’, ‘अतिरिक्त नहीं’, ‘कविता से लम्बी कविता’, ‘कभी के बाद अभी’, ‘प्रतिनिधि कविताएं’ नाम से उनकी कविता की किताबें प्रकाशित थीं।

‘पेड़ पर कमरा’, ‘महाविद्यालय’, ‘नौकर की क़मीज़’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ जैसी किताबें भी उन्होंने लिखीं। साल २०२४ में आपको ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।