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बजा नारी जागृति साज

नताशा गिरी  ‘शिखा’ 
मुंबई(महाराष्ट्र)
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आँखों में सपना लिए,जज्बा लिए दिल में,
जमीं क्या चीज है,फलक अब कर मुट्ठी में।

हसरतें हैं हमारी,बुलंद रहा सदा हौंसला,
रुढ़िवादी परम्पराओं का तोड़ना है यह घोंसला।

अंधेरों में अपने ही अस्तित्व को जकड़ लिया था,
तोड़नी है जंजीर,बढ़ाना है अपना दायरा।

खुलें आसमां में अपने नाम की गुहार लगाकर,
नारी शक्ति सामाजिक धुरी है,पुनः याद दिला कर।

बजा नारी जागृति साज,जगाना को नारियों को आज,
अधिकार और कर्तव्य दोनों पहलुओं पर पकड़ रखो खास।

दबी-दबी ख्वाहिशें हर जगह क्यों दिखें तुम्हें बंदिशें,
विचारों की आंधियों में भी खुद को समझा लेती हो।

गैरों के डर से संकोच में सिमटा जीवन बिता लेती हो,
और भूगर्भीय अंधेरों में अपना अस्तित्व गँवा देती हो।

तुम नारी हो,समाज व्यवस्था की आधारशिला हो,
तुम सभ्यता का स्रोत हो,संस्कृति की निर्माता हो।

फिर क्यों यह यौन उत्पीड़न,दहेज प्रथा,बाल विवाह ?
कन्या भ्रूण हत्या,महिला तस्करी के आँकड़े बढ़ रहे।

हमारे ही अस्तित्व को हमसे ही देखो जकड़ रहे हैं,
सभ्यता,संस्कार के नाम पर बढ़ते क़दम पकड़ रहे हैं।

नारी सशक्त थी और रहेगी,दिशा भी वही तय करेगी,
पुस्तकों से निकलकर वास्तविक जीवन में लय भरेगी।

बस नारी को ही नारी को,नारी अर्थ समझाना होगा,
यह सुंदर स्वर्ग नहीं,रणभूमि है नारी को जागना होगा॥

परिचय-नताशा गिरी का साहित्यिक उपनाम ‘शिखा’ है। १५ अगस्त १९८६ को ज्ञानपुर भदोही(उत्तर प्रदेश)में जन्मीं नताशा गिरी का वर्तमान में नालासोपारा पश्चिम,पालघर(मुंबई)में स्थाई बसेरा है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली महाराष्ट्र राज्य वासी शिखा की शिक्षा-स्नातकोत्तर एवं कार्यक्षेत्र-चिकित्सा प्रतिनिधि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की भलाई के लिए निःशुल्क शिविर लगाती हैं। लेखन विधा-कविता है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-जनजागृति,आदर्श विचारों को बढ़ावा देना,अच्छाई अनुसरण करना और लोगों से करवाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज भी यही हैं। विशेषज्ञता-निर्भीकता और आत्म स्वाभिमानी होना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अखण्डता को एकता के सूत्र में पिरोने का यही सबसे सही प्रयास है। हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए,और विविधता को समाप्त किया जाए।”

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