मन की आँखें
वंदना जैनमुम्बई(महाराष्ट्र)************************************ छुपाए बैठी हूँ भोलेपन को आँचल में,बडी मासूमियत से दूसरों को देखती हूँ। बुरा कोई भी नजर आता नहीं,पर बाद में उनके करतब देखती हूँ। आसक्त हूँ मान्यताओं और संस्कारों से,आचरण में भी अभिव्यक्त देखती हूँ। कभी-कभी मन के अक्षांश से उतर कर,तन पर कुटिलता भरी नजर देखती हूँ। छल-कपट भरी दुनिया की … Read more