ग्रीष्म में प्यासे परिन्दे
प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश) ******************************************* गर्मी में प्यासे फिरें, बंधु परिन्दे आज।कोई रखता नीर नहिं, कैसा हुआ समाज॥ नहीं सकोरे अब रखें, छत, आँगन में सून।खग को मारे ग्रीष्म नित, काल बने मई-जून॥ भटकें व्याकुल आज खग, दूर-दूर नहिं नीर।देखो बढ़ती जा रही, मासूमों की पीर॥ ग्रीष्म सताता जीव को, हर लेता है प्राण।नीर बिना … Read more