गिर रही कीमत इंसान की
प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश) ******************************************* गिर रही है रोज़ ही,कीमत यहाँ इंसान की।बढ़ रही है रोज़ ही, आफ़त यहाँ इंसान की॥ न सत्य है,न नीति है,बस झूठ का बाज़ार हैन रीति है,न प्रीति है,बस मौत का व्यापार है।श्मशान में भी लूट है,दुर्गति यहाँ इंसान की,गिर रही है रोज़ ही, कीमत यहाँ इंसान की…॥ बिक रहीं … Read more