आँखों ने अक्सर…

डॉ. श्राबनी चक्रवर्तीबिलासपुर (छतीसगढ़)************************************************* आँखों को अक्सर,खामोश रहकर भी गौर फरमाते देखा हैआँखों को अक्सर इशारों से,बातें करते हुए देखा है। आँखों में अक्सर,समंदर की अथाह में डूबे हैंआँखों ने अक्सर,कई गहरे राज़ छुपाए हैं। आँखों ने अक्सर,मन की थाह ली हैआँखों ने अक्सर,प्रेम का गीत गुनगुनाया है। आँखों ने अक्सर,वीरान रातों की कथा सुनाई … Read more

आओ, हम पेड़ लगाएँ

मंजू अशोक राजाभोजभंडारा (महाराष्ट्र)******************************************* आओ, चलो हम पेड़ लगाएँ,कुछ इस तरह से हरियाली लाएँ। आम और जामुन जब-जब खाएँ,उनकी गुठलियाँ जमा करते जाएँउन्हें अपने संग तब ले जाएँ,जब-जब सुबह शाम टहलने जाएँउन्हें सड़क के किनारे बस फेंकते चले जाएँ। न कोई मेहनत, न कोई झंझट,इस रीत को क्यों न हम सब अपनाएँइस बारिश का लाभ … Read more

पर्यावरण का नुकसान

हेमराज ठाकुरमंडी (हिमाचल प्रदेश)***************************************** मेरी रूह रोती है कांप-कांप कर,देख के पर्यावरण का नुकसानचिन्ता लगी है मन में इक भरी कि,हो न जाए कहीं यह धरती श्मशान। दया आती है तेरी करनी पर,तू कर क्या रहा है ओ इंसान ?सृष्टि रचाने वाले से डर जरा,तू क्यों बना है खुद भगवान… ? नदियाँ नाला हो रही … Read more

ससुराल के बीते दिन

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश)******************************************* स्वर्णिम युग ससुराल का, याद करे दामाद।पर अब कुछ भी है नहीं, केवल है अवसाद॥ ख़ातिरदारी है नहीं, अब सूना मैदान।बिलख रहे दामाद जी, रुतबे का अवसान॥ स्वर्णिम युग पहले रहा, खाते थे पकवान।अब तो सारे मिटे गए, ससुराली अरमान॥ कितना प्यारी थी कभी, जिनको तो ससुराल।उनको दुख अब सालता, अब … Read more

बढ़ते रहिए जीवन में

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* बढ़ते रहिए, जीवन में कुछ न कुछ करते रहिए,हिन्दी-हिन्दुस्तान प्रगति पथ गढ़ते रहिएपरमार्थ निकेतन लक्ष्य कर्मपथ संघर्षों,यायावर हमसफ़र राष्ट्र पथ बढ़ते रहिए। अरमानों उत्तुंग शिखर नित चढ़ते रहिए,राष्ट्रधर्म श्रीवर्धन रथ रण नित बढ़ते रहिएतनिक वक्त हो आत्मचिन्तना निज कृतकर्मों,स्वाभिमान निर्माण राष्ट्र नव गढ़ते रहिए। कहाँ नहीं बाधित जीवन श्रम … Read more

दौड़ती थी सरपट

संजीव एस. आहिरेनाशिक (महाराष्ट्र)********************************************* साईकिल दिन की संध्या पर मुझे याद आ रही है मेरी वो साईकिल,जिसके प्यार में मैं सालों तक रहा डूबा,और कहीं नहीं लगता था दिलअगर माँ के बाद कुछ प्यारा था, तो वह केवल मेरी प्यारी साईकिल थीउन दिनों हम सब बच्चों की साईकिलें चलाते-चलाते लगती महफ़िलें थी। तीन चरणों में … Read more

कश्ती कागज की

डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’जोधपुर (राजस्थान)************************************** अधजल गगरी छलकत जाय प्रणय,मिलन की आस में जीवन की रवानी। कागज की कश्ती बारिश का पानी,वो यादें बचपन की सुहानी। सुनाती जब नानी और दादी कहानी,आ जाती फिर निंदिया सुहानी। मौज-मस्ती के हिचकोले रंगीन यादें,वो नाव कागज की पानी में चलानी। सुंदरता बचपन की गुदगुदाती बातें,उछल-कूद के संग भीगे … Read more

मन घबरा रहा…

हरिहर सिंह चौहानइन्दौर (मध्यप्रदेश )************************************ विश्व पर्यावरण दिवस (५ जून) विशेष…. जल रही धरती,ज़लज़ला आ रहाप्रकृति का यह तांडव,मन घबरा रहा। साँस लेने के लिए जरूरी हवा,वह भी दूषित व जहरीली हो चुकीबचाओ इस धरती माँ को,मन घबरा रहा। हरित क्रांति व ग्रीन हाउस को, सपने मत बनाओपेड़ लगाओ, आओ आगे आओ प्रकृति बचाओ,ईंट पत्थरों … Read more

पंछी की फरियाद

सीमा जैन ‘निसर्ग’खड़गपुर (प.बंगाल)********************************* पेड़ और पानी से भरपूर था,घरौंदा डालियों पर झूलता थासभी पक्षी मस्ती मचाते थे,पेड़ पर पींगे लगाते थे। जाने किस दुश्मन का साया,प्यारे जंगल पर छाया थाएक-एक कर धीरे से उसने,सब, पेड़ों को कटवाया था। हरियाली सारी खत्म हो गई,पेड़ों की संख्या न्यून हो गई।दाने जाने कहाँ खो गए ?पानी के … Read more

नशा’ बे-पल- बे-मौत बुलावा

सरोज प्रजापति ‘सरोज’मंडी (हिमाचल प्रदेश)*********************************************** बात पते की हे जन ! जानो,नशा नशीला, मारक मानो हैबे-पल बे-मौत बुलावा,क्या है शान ? प्रतिपल छलावा। धीमा जहर, जीवन बुझाता,घनेरी यंत्रणा, अधम तृष्णाकैसी नियति दूभर, मजबूरी,क्रय-विक्रय है, लानत ‘दस्तूरी।’ शराब, भांग, सिगरेट, गांजा,तम्बाकू, गुटखा ‌है शिकंजा अय्याशी!,दूर-बुद्धि है लाता,नैतिक पतन, दूर-चरित्र होता। खास स्पर्धा, दिवस हैं मनाते,भाषण, नारे, … Read more