दीवारें ही दीवारें
संजीव एस. आहिरेनाशिक (महाराष्ट्र)********************************************* दीवारें ही दीवारें बढ़ती जा रही है आसपास,जहां भी नजर डालो उठ रही है दीवारें पास-पासयहाँ कभी खुली हवाओं की आवा-जाही थी,हवाएँ कभी आया करती थी, कभी जाया करती थीमस्तीभरे अंदाज में विहराया करती थी,कभी खुशबू के झोंके लाया करती थी तोकभी तिनके उड़ाके लाया करती थी,कभी मिटटी की गंध कभी … Read more