जल रही धरा
सरोजिनी चौधरीजबलपुर (मध्यप्रदेश)********************************** जल रही धरा यहाँ,जल रहा है आसमाँताप का प्रकोप ये,दिखा रहा अलग जहाँ। वर्ष-वर्ष बढ़ रही,सोख पानी सब रहीकाट-काट पेड़ सब,हरीतिमा को हर रही। यह मानव का प्रयास है,जो नाशवान आज हैप्रकृति के साथ खेल ये,डरावना भविष्य है। चलो सभी सचेत हो,इधर ही सबका ध्यान हो।लगाओ नित्य वृक्ष एक,यह कार्य अनिवार्य हो॥