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तन्हाई भी अब गुज़रती नहीं

ऋचा सिन्हा
नवी मुंबई(महाराष्ट्र)
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अश्क़ हैं कि संभलते नहीं,
रूह है कि निकलती नहीं।

दर्द की झड़ी जो थमती नहीं,
डूब के साक़ी उफ़नती नहीं
काली अँधियारी उदासी,
तन्हाई भी अब गुज़रती नहीं।

काँपते लब बिखरते एहसास,
रूठ गए सब साज श्रंगार
जीवन की है ये अजीब दास्तान,
ये दूरी भी अब सही जाती नहीं।

गफ़लत में गुज़ारी थी ज़िंदगी,
भूल गई थी सब रुसवाई।
सोचा ना था बादल फटने को है,
पता ना था सैलाब आने को है॥

परिचय – ऋचा सिन्हा का जन्म १३ अगस्त को उत्तर प्रदेश के कैसर गंज (जिला बहराइच) में हुआ है। आपका बसेरा वर्तमान में नवी मुम्बई के सानपाड़ा में है। बचपन से ही हिंदी और अंग्रेजी साहित्य में रुचि रखने वाली ऋचा सिन्हा ने स्नातकोत्तर और बी.एड. किया है। घर में बचपन से ही साहित्यिक वातावरण पाने वाली ऋचा सिन्हा को लिखने,पढ़ने सहित गाने,नाचने का भी शौक है। आप सामाजिक जनसंचार माध्यमों पर भी सक्रिय हैं। मुम्बई (महाराष्ट्र)स्थित विद्यालय में अंग्रेज़ी की अध्यापिका होकर भी हिंदी इनके दिल में बसती है,उसी में लिखती हैं। इनकी रचनाएँ विभिन्न पत्रिकाओं में छप चुकीं हैं,तो साझा संग्रह में भी अवसर मिला है।