श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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अब दे दो अपना आशीष हे भगवन,
अत्याचार जगत का सहा न जाए।
तेरा ही यह रचा हुआ सब,माया का संसार है,
छल-कपट से बचने का कहो क्या उपचार है।
नित नई उलझन आती है नारी के जीवन में,
नारी है नारी की दुश्मन,लगाती आग तन में।
दहेज की अग्नि में कब तक बेटियाँ जलती रहेगी,
कितने अत्याचार सहेगी,दुःख किससे कहेगी।
दया करो हे दया निधि,ताप जगत का सहा ना जाए,
कौन बचाए लाज हमारी,अकेली राह चला न जाए।
बाबा हमारे पढ़ा-लिखा दामाद ढूंढ के लाए थे,
सुन्दर-सलोना रूप देख के जमाई तुझे बनाए थे।
ले गया ब्याह कर,अत्याचारी धन-मन के क्रोधी ने,
मार दिया संग ले जाकर,दानव दहेज के लोभी ने।
मेहन्दी हाथों की छूटी न थी,महावर पैरों की धुली न थी,
जी भर के आँगन घूमी न थी,सुला दिया पिया मुझे अर्थी।
झूठा प्यार मुझे दे के बहलाया,बोला तुम ही हो जीवनसाथी,
पिता का दिया धन अपनाया,किया धोखा जीवनसाथी।
हार चुकी हूँ मैं अब हे भगवान,नई राह मुझे अब दिखलाना,
लड़ती रहूंगी अन्याय से,प्रभु बस हिम्मत देने आ जाना॥
परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।