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फणीश्वर नाथ रेणु के नारी पात्रों का सन्दर्भ

डॉ.अर्चना मिश्रा शुक्ला
कानपुर (उत्तरप्रदेश)
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महिला दिवस स्पर्धा विशेष……

सृष्टि का आधार,प्रकृति की पुत्री-नारी जो आकर्षक,स्नेहयुक्त, उल्लासदायिनी है,अनंतकाल से ही साहित्यकारों की लेखनी में चित्रित होती रही है। आँचलिक उपन्यासकार फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ के साहित्य में उनकी ही तूलिका से चित्रांकित साहित्य फलक में अवतरित मुख्य नारी पात्रों का सन्दर्भ प्रस्तुत कर रही हूँ ।
नारी का जीवन सदैव जाटिलताओं से घिरा रहा है। साहित्य में अनुभव के क्षेत्र आते हैं,अनुभव के क्षेत्र समय और देशकाल के आधार पर परिवर्तित भी होते रहते हैं। लेखक ने अपने पात्रों द्वारा साहित्य के क्षेत्र में जीवन के वास्तविक संघर्ष को व्यक्त कर समाज की तत्कालीन वास्तविकता को दिखाया है। लेखक ने नारी चरित्र के माध्यम से आधुनिक युग की समस्याओं को अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है। यह समाज और पुरुष नारी के बिना अपूर्ण है,तो साहित्य भी नारी चित्रण के बिना पूर्ण नही हो सकता। सभ्यता और संस्कृति का विकास वस्तुतः नारी की स्थिति के विकास से ही प्रतिबिम्बित होता है। मानव के जीवन संघर्ष की दौड़ में,सभ्यता को ओढ़ने,पीड़ा और अवसाद से बाहर निकालने में स्त्री जाति ने सदा ही पुरुषों की विषम परिस्थितियों को परिवर्तित करने का प्रयत्न किया है।
लेखक ने अपने साहित्य में नारी के सन्दर्भों को लेकर देशकाल तथा वैचारिक समस्याओं को उठाया है। समाज में व्याप्त मनोविकारों को लेकर नारी चरित्र में डाल दिया है। नारी की जो समस्याएँ ‘रेणु’ जी ने तब व्यक्त की थी,आज भी नारी सशक्तीकरण के दौर में जारी हैं।
‘मैला आँचल’ की प्रमुख स्त्री पात्र ‘कमला’ है,जो डॉ. प्रशांत के बच्चे की माँ विवाह से पूर्व ही बन जाती है। नवजात शिशु के प्रति उसकी वत्सलता को आँचल मैला करने जैसी कोई अनुभूति नहीं होती। वह एकनिष्ठ सच्चे प्रेम का उपहार डॉ. प्रशांत को दान करती है,वहीं ‘लक्ष्मी’ नामक पात्र के माध्यम से फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ जी ने बाल यौन शोषण एवं दासी प्रथा को उपन्यास में चित्रित किया है। ‘लक्ष्मी’ सेवादास की मृत्यु के पश्चात रामदास के चंगुल में फंस जाती है। वह अनवरत शोषण की शिकार होती रहती है। फणीश्वर जी ने लक्ष्मी के बदले हुए चरित्र को सशक्त वक्ता व सामाजिक कार्यकर्त्ता के रुप में व्यक्त किया है तो दूसरी ओर उसे आदर्श प्रेमिका और पत्नी के रुप में भी दिखाया है। मठ के एक प्रसंग द्वारा लक्ष्मी में प्रतिशोध की भावना को भी लेखक ने व्यक्त किया है। लेखक ने लक्ष्मी के चरित्र के माध्यम से पुरुष वर्ग की नारी जाति पर संदेहपूर्ण दृष्टि पर लेखनी चलाई है,वहीं श्रेष्ठ सहायक स्त्री पात्र लक्ष्मी द्वारा नारी मन की एक निष्ठता को व्यक्त किया है। ‘ रेणु’ जी ने अल्पावधि के लिए चित्रित पात्र ‘ममता’ में कर्त्तव्यनिष्ठा,निस्वार्थभाव,मानवीय दृष्टिकोण,मातृभूमि के प्रति कर्त्तव्य को लेकर संतुष्ट और प्रसन्न दिखाई देती है। उपन्यासकार ने ममता को एक आदर्शनारी और त्यागमयी प्रेमिका के रुप में प्रस्तुत किया है। अन्य स्त्री पात्रों में फुलिया,सिलिया और रमपियरिया आती है,जो छोटे प्रसंगों के माध्यम से अपना प्रभाव डालती हैं।
‘परती परिकथा’ उपन्यास की प्रमुख पात्र ‘ताजमनी’ मुख्य नायिका के रुप में सामने आती है। लेखक ने संपूर्ण उपन्यास में उसे एक प्रेमिका के रुप मे चित्रित किया है,वहीं गंगा काकी रोक-टोक व आगाह करती नजर आती है।
‘मलारी’ एक सफल सहायक पात्र के रुप में चित्रित की गई है। वह निचली (चमार)जाति से है। पढ़-लिखकर अर्न्तजातिय विवाह करती है जो आज के परिप्रेक्ष्य में तर्क संगत है। अर्न्तजातिय विवाह लेखक व पात्र दोनों के लिए साहस और अभूतपूर्व सफलता है,क्योंकि जब जातिगत भेवभाव हटेगा,तो शोषण भी हटेगा।
‘इरावती’ पात्र के माध्यम से लेखक ने भारत विभाजन के समय भोगी गई यातनाओं के परिणाम स्वरूप मानवीयता के प्रति अविश्वास उसके चरित्र को हीन भावना से भर देता है,जो आज के परिप्रेक्ष्य में अवसाद जैसी बीमारी का संकेतक था। नारीगत सौहार्द भावना सदैव ओत-प्रोत दिखाई गई है।
‘दीर्घतपा’ उपन्यास के प्रमुख पात्र कु. बेला गुप्त ही आती है। उपन्यास का नामकरण बेला की तपोमय भूमिका के अनुरूप ही रखा गया है। फणीश्वर नाथ रेणु जी बेला गुप्त के क्रांतिकारी जीवन को प्रस्तुत करते हैं। इसी तारतम्य में बेलागुप्त व्यभिचारी कुप्रवृत्ति का शिकार होती है। अपने साहस के बल पर वह नए जीवन की शुरुआत करती है और नर्स की ट्रेनिंग लेती है । कुछ वर्षों बाद वह एक क्रांतिकारी रोगी से अपने अस्पताल में प्रेम करती है और उसके साथ भाग जाना चाहती है,किंतु स्थितियां पुनः बदलती हैं। वह वर्किंग वूमेंस बोर्ड की फील्ड आर्गेनाइजर नियुक्त होती है। बाद में वह वीमेंस वेलफेयर बोर्ड की सुपरिन्टेंडेंट की सफल भूमिका निभाती है। वह बदले हुए रुप में आज की सबला नारी की कर्तव्यशीलता,त्याग और निस्वार्थ भाव को व्यक्त करती है।
श्रीमती ज्योत्सना आनन्द ‘ दीर्घतपा’ उपन्यास की खलनायिका पात्र है। वह आज के नारी निकेतन,नारी गृह जैसे संस्थान में वैश्यावृत्ति की शिकार,विलासप्रिय और निम्नकोटि की महिला है। इस चरित्र के प्रति पाठकों के मनो मस्तिष्क में वितृष्णा का भाव जागृत होता है। श्रीमती ज्योत्सना आनन्द का अर्थ और काम दोनो में ही भ्रष्ट चरित्र सामने आया है। यह पात्र अनैतिकता के गर्त में घृणित मारी चरित्र का संकेत देती है।
‘ दीर्घतपा’ उपन्यास में श्रीमती रमला बनर्जी ही बेलागुप्त को प्रतिष्ठित कराती हैं। उनका चरित्र एक तरफ बेला गुप्त का मार्ग दर्शन कराता है तो दूसरी तरफ श्रीमती आनन्द के कार्य व्यवहार में बाधा पहुंचाता है। लेखक ने रमला बनर्जी के चरित्र के माध्यम से एक आदर्श समाज सेविका के प्रभावशाली और सशक्त चरित्र को प्रस्तुत किया है।
‘ दीर्घतपा’ में अन्य नारी पात्र विभा-गौरी,कुंती-तारा,अंजू-मंजू,रमा-रेवा तथा छात्रावास की नौकरानी रमरतिया सभी अपनी-अपनी योग्यताओं के साथ एक विशेष छाप छोड़ती हैं।
‘ जुलूस’ नामक उपन्यास की प्रमुख पात्र ‘पवित्रा’ बचपन से ही संघर्षों से जूझकर ही यौवनावस्था को प्राप्त करती है। वह व्यभिचारी वृत्ति के लोगों से अपने आपको बचाते हुए एक लोकप्रिय युवती के रुप में चित्रित की गई है। पवित्रा यथा नाम तथा गुण को चरितार्थ करती है और त्यागमय चरित्र स्थापित करती है।
‘पल्टू बाबू रोड’ फणीश्वरनाथ रेणु जी का लघु उपन्यास है। इसमें बिजली प्रमुख पात्र है,जो आकर्षक एवं प्रभावी व्यक्तित्व से परिपूर्ण है। सभी जगह बिजली के आदेशों को स्वीकार किया जाता है।
उपन्यास में आर्थिक संबंधों में यौन शोषण का चित्रण मिलता है।
रेणु’ जी ने जिस नारी उत्पीड़न का चित्रण विभिन्न नारी चरित्रों के माध्यम से किया है,यह सामाजिक स्तर पर व्यक्ति नहीं,बल्कि समाज एक इकाई बन कर करता है। जो समाज नारी को प्यार और सुरक्षा देता है,वही समाज नारी के प्रति असहिष्णु भी हो जाता है। लेखक ने जहाँ कहीं भी नारी समस्या उठाई है,उसके अधिकारों के अशोभनीय तथा अनुचित व्यवहार को सहन करने की विवशता दिखाई है। वह बार-बार विवश होकर भी अपने तन को बचा नहीं पाती,जिसका कारण आर्थिक विवशता ही है। उत्पीड़न का निमित्त कभी समाज बनता है तो कभी सामाजिक परम्परावादी दृष्टिकोण। वह प्यार में स्थायित्व की भावना से जुड़ती है और बार- बार शिकार होती है। पुरुष द्वारा शोषित नारियों की अभिव्यक्ति इनकी रचनाओं में गूंजती रहती हैं। .
वर्तमान व्यवस्थाओं में महिलाओं को जीना है तो संगठित होकर इस व्यवस्था को बदलना होगा। इधर नारी की दशा और दिशा में व्यापक परिवर्तन आया है। आज की नारी अपने प्रति न्याय और उत्पीड़न के खिलाफ जो संघर्ष कर रही है,उसे अपने प्रयत्न में अवश्य सफलता मिलेगी।

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