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हिंदी और हिंद-प्रेमी कवियों ने छेड़ी कविता की तान

मुम्बई(महाराष्ट्र)l

देश और दुनिया के विभिन्न कोनों से जब कवि देश की भाषा के प्रति समर्पित वैश्विक ‘हिंदी ई-कवि सम्मेलन’ के मंच पर आए तो उनकी रंग-बिरंगी स्तरीय कविताओं और गीतों ने समां बांध दियाl हिंदी साहित्य के वैश्विक पटल पर एक यादगार कवि सम्मेलन अपनी छाप छोड़ गया। सम्मेलन में उपस्थित प्रायः सभी कवि ऐसे थे,जो मूलतः विभिन्न क्षेत्रों के वरिष्ठ और प्रतिष्ठित सफल व्यक्ति और विद्वान हैं,पर मूल कार्य के साथ हिंदी,हिंदुस्तान और हिंदी साहित्य का ध्वज भी थामे हुए हैं।
सम्मेलन के प्रारंभ में ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ की संयोजक’ डॉ. सुस्मिता भट्टाचार्य ने सर्वप्रथम देश-विदेश के तमाम प्रतिष्ठित साहित्यकारों,कवियों और श्रोताओं का शब्द-पुष्पों से सम्मान किया। उन्होंने सभी कवियों और श्रोताओं से अनुरोध किया कि,वे जहां कहीं भी हों,अपनी भारतीय भाषाओं को बचाने और बढ़ाने के लिए एक सेनानी की भांति अपना अधिकतम योगदान प्रदान करें और इसके लिए हर संभव उपाय करेंl उन्होंने हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं के प्रयोग व प्रसार को आगे बढ़ाने के लिए ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ के उद्देश्य तथा किए जा रहे कार्यों की जानकारी दी।
काव्य संध्या का आगाज़ उड़ीसा राज्य के कटक से उपस्थित कवि डॉ. अमूल्य रत्न मोहंती ने कियाl इसके आगे शुरुआत सूर्योदय के राज्य अरुणाचल से उपस्थित डॉ. जमुना बीनी ने की। उऩ्होंने बहार और आदिवासी नामक अपनी कविता में अरुणाचल के जनजीवन को बहुत ही खूबसूरती से उकेरा। हिंदीतर भाषी होने के बावजूद इनकी कविताएं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एम.ए. के पाठ्यक्रम में शामिल हैं।
सम्मेलन को आगे बढ़ाते हुए उत्तर प्रदेश की कवयित्री शैलजा सिंह ने अपने मधुर गीतों से समां बांध दिया। यह आकाशवाणी-दूरदर्शन सहित विभिन्न मंचों पर अपनी रचनाओं का रस बिखेरती रही हैं। उनका गीत-जादूगरनी हूँ,मैं जादू कर दूँगी... ने सम्मेलन में बहुत धूम मचाई।
अगले कवि ऑस्ट्रेलिया से डॉ. सुभाष शर्मा ने अपनी कविता हिंदी पर अभिमान करें से श्रोताओं को प्रेरित व अभिभूत किया। आप सेन्ट्रल
क़्वींसलैंड विवि में प्रबंधन विभाग के अध्यक्ष हैं। समर्पित हिंदी सेवी तथा बहुत ही अच्छे कवि के रुप में ऑस्ट्रेलिया में हिंदी की काव्यधारा को निरंतर आगे बढ़ा रहे हैं।
इसके पश्चात इंग्लैंड से कवि कृष्ण कन्हैया ने कुछ मुक्तक पढ़े और फिर ग़ज़ल-किताबी जिंदगी और उसके बाद चंदा मामा कविता से श्रोताओं का मन मोह लिया। अमेरिका से सम्मिलित कवि डॉ.अशोक सिंह ने अपनी कविताओं से श्रोताओं को लुभाया। उनकी ग़ज़ल-जिसको देखा ही नहीं,उससे निभा ली हमने और गीत-हसरतें जब जवान होती हैं ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। डॉ.अशोक सिंह पेशे से तकनीकी वास्तुविद ,लेकिन हृदय से कवि हैं। ये अमेरिका में हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
महाराष्ट्र से उपस्थित कवि आलोक अविरल ने अपनी कविता में मानवीय संवेदनाओं को अनुभूति के स्वर दिए। उनकी कविताएँ-एक मन ग़रीब मेरे तन में चुपचाप एकाकी बैठा है और किलकारी का सफ़र ने समां बांध दिया।
इसके पश्चात सम्मेलन में राम-कृष्ण और भारतीय गौरव को अपना काव्यमय स्वर दिया डॉ. आशीष कंधवे ने। डॉ. कंधवे प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं,औरभाषाई संघर्ष में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
अंत में वैश्विक हिंदी सम्मेलन के निदेशक और काव्य संध्या के संचालक डॉ. एम. एल. गुप्ता ‘आदित्य’ ने कविता किसने फैलाई है यह खबर कि रावण गया है मर... से श्रोताओं को रोमांचित किया। काव्य संध्या के अध्यक्ष डॉ. सुधाकर मिश्र ने अपनी कविताओं से सम्मेलन को शिखर पर पहुंचा दिया। उनकी कविता बेटी ने श्रोताओं को भीतर तक छू लिया। डॉ. मिश्र विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित भारत के वरिष्ठ साहित्यकार हैं।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुम्बई)

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