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हिन्दी हिन्द सारे जहां

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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सुन्दर सुखद प्रभात हो,राम राम सुखधाम।
हिन्दी हिन्द सारे जहां,हो भारत अभिराम॥

हरित भरित साहित्य से,काव्यशास्त्र उद्रेक।
नीति-प्रीति संगीत नित,हिन्दी हो अभिषेक॥

सुमधुरा संस्कृतसुता,वैज्ञानिक बहुभाष।
बीते चौहत्तर बरस,राष्ट्र भाष अभिलाष॥

भावों का अन्तर्मिलन,नवरसगुण अनुभाव।
अलंकार ध्वनि रीति गुण,जीवनार्थ उद्भाव॥

रीति-नीति सम प्रीतिमय,दर्पण जीवन गेय।
प्रतीयमान साहित्य नव,कृति जीवन नित ध्येय॥

मात्रिक में अभिव्यञ्जना,मुक्तक से परिपूत।
निदर्शन समसामयिक,आलोचन अभिभूत॥

विविध भाष समधुर ललित,हिन्दी नित अवदान।
खिन्न न हों,मानस मुदित,सहज भाव सम्मान॥

आजादी की क्रान्ति गान,हिन्दी में जयघोष।
सिसक रही अधिकार को,आज तलक अफ़सोस॥

नैन अश्क हिन्दी वतन,पा अपनों का घाव।
जब आंग्ल उर्दूमय वतन,कैसे हो सद्भाव॥

हिन्दीभाषी देश में,झेले नित अवमान।
राज-काज अंग्रेजियत,माने शान महान॥

ग़ज़लकार शायर यहाँ,कर उर्दू बौछार।
हिन्दी कवि के नाम पर,पाते धन उपहार॥

कलमकार कवितावली,हिन्दी सेवन मान।
शब्द अर्थ नवरस गुणी,करूँ राष्ट्र यशगान॥

मानक हो हिन्दी वतन,संवर्धन साहित्य।
सम्मेलन कविभाव का,गौरवमय औचित्य॥

गढ़ता हूँ कवितावली,हिन्द वतन यशगान।
रत बिहार की शान में,हो हिन्दी उत्थान॥

श्लाघनीय सत्कार्य नित,रत हिन्दी साहित्य।
सम्मेलन सुपात्र बन,रचूँ काव्य वैविध्य॥

समरस भाष समाज का,हो हिन्दी प्रतिमान।
एक राष्ट्र मानक बने,हिन्दी हिन्दूस्तान॥

आज ‘विश्व हिन्दी दिवस’,गौरवमय उपवेश।
स्वीकारें बधाईयाँ,हिन्दी जग संदेश॥

धुन ‘निकुंज’ कवि काकली,गाऊँ भारत गीत।
हिन्दी हो भाषा वतन,सर्वमान्य नवनीत॥

सज निकुंज कवि कामिनी,अलंकार रच रीति।
उन्नत जन धन शौर्य बल,भारत हिन्दी प्रीति॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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