नरेंद्र श्रीवास्तव
गाडरवारा( मध्यप्रदेश)
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शाम होने तक,
कहीं से आ जाते हैं
और उड़ने लगते हैं,
हवा में मुद्दे।
दौड़ पड़ते हैं देखने लोग,
जरा-सी देर में लग जाती है भीड़।
कुछ लोग घर में ही रहकर,
टेलीविजन में देखना करते हैं पसंद
घर में रहकर ही वह,
लेते हैं मजा,खीझते हैं या कोसते हैं
जिसकी जैसी तासीर।
मुद्दे भरते हैं,
अजीब-सी सिहरन दिलो-दिमाग में
आँख,कान,नाक,भुजा और हथेलियों में,
मुद्दों के प्रति रूझान देखकर
नकली और मिलावटी मुद्दे भी,
छोड़े जाने लगे हैं हवा में।
मुद्दा बन गया है खेल,
अलग किस्म का आजकल
इसमें हार या जीत नहीं होती,
इसमें दी जाती है सजा एक पक्ष को
कुछ कहने की,कुछ करने की,
या कुछ न कहने की,कुछ न करने की।
इसमें किसी को आता है मजा,
तो कोई होता है परेशान
किसी को होता है नुकसान,
तो किसी को होता है नफ़ा।
एक-दो दिन तक ही,
खेला जाता है यह खेल
और फिर नये मुद्दे की,
शुरू हो जाती है तैयारी।
२१वीं सदी में,
बहुत कुछ नया आया है।
नए अंदाज में,
मुद्दे भी…॥