सुजीत जायसवाल ‘जीत’
कौशाम्बी-प्रयागराज (उत्तरप्रदेश)
*******************************************
मृत्यु प्रेयसी नहीं बेवफ़ा न ही देगी किसी को धोखा,
निर्धन हो या सम्राट अशोका,घी खा-चाहे खा बाटी चोखा
माथ में शोभित दुर्घटना बिंदी बीमारी है हस्त की चूड़ी,
बाढ़,भूकंप,निर्दयी ‘कोरोना’,हत्या धर रूप अनोखा।
आई सीयू कक्ष में हो प्रस्तुत प्रेमिका मंद-मंद मुस्काती,
भर निज बाँह चीरे चीरगृह में निर्वस्त्र देख इठलाती
नव सोलह श्रंगार संग हाय रे लौटा अब पुनः कोरोना,
आत्महत्या कर फाँसी लटके वो प्रिय जिह्वा से बलखाती।
परमात्मा का अंश जीव करें आमंत्रित वो संताप हरेंगें,
यहाँ स्वजन मोह माया वश दु:ख क्रंदन चीत्कार करेंगे
तज मोटा गद्दा तुझको काठ की शैय्या पे लेटना होगा,
भूल के स्वप्न में ना आना तेरे अपने ही तुझसे डरेंगे।
दस दिन का हो क्रिया कर्म मूरख ढाई दिन में कर डाला,
निज सुख-सुविधा माँ को भूला नव माह कोख में पाला
तर्क-वितर्क-कुतर्क न कर जरा पढ़ ले तू गरुड़ पुराण,
सत्य सनातन धर्म ज्ञान पुस्तिका सुन मैंने आज खंगाला।
पितृ दोष का जतन तू जप श्री विष्णु भोले अभिराम,
पिंडदान श्रद्धापूर्वक कर तू ले जा अब गया के धाम
संगम काशी गंगधार में मन्त्रोचारित श्रद्धा की डुबकी,
आशीष पूर्वजों का ले ले पगले सदा आएगा तेरे काम।
गंगा तट लंगड़ा-अंधा-कोढ़ी को मैं जो देता वो रख लेता,
कुकर्म ये अपना भोग रहे ये सब थे भ्रष्टाचारी नेता।
जीवन है बस नाट्य मंच हम सब करते हैं बस अभिनय,
निज पाप कर्म से दुःख को तू हर जन्म में पतवार-सा खेता॥