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मैं बनफूल

अलका ‘सोनी’
पश्चिम वर्धमान(पश्चिम बंगाल)
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उपवनों में खिले,
काट-छांट कर
कतारबद्ध किए
पुष्पों की छटा कभी,
मैं नहीं ला पाता
अपने अंदर।

माली के हाथों से,
पड़ने वाली फुहारों से
भींज नहीं पाती,
मेरी जड़ें
जितनी बार यहां,
लगाया गया,उतनी बार
मुरझाता रहा।

मेरी जड़ें पोषित होती हैं,
सघन वनों की
मिट्टी में,
मेरी कोपलें पनपती है
बादलों की गर्जना और,
बेतरतीब पड़ती बूंदों से।

सूरज की तीखी किरणों के,
प्रहार से फूटती हैं
मेरी कलियाँ,
प्रकृति के निर्मल
हाथों के दुलार से,
पाता हूँ नवजीवन
राजभवनों की कृत्रिमता,
नहीं भाती मुझे।

सम्भ्रांत पुष्पों की,
सुकुमारिता से कोसों दूर
निर्जन वनों में खिलकर,
अपनी नैसर्गिकता में
खिलना,खिलखिलाना,
कड़ी धूप,आंधियों में
अडिग खड़ा रहना,
और फिर
मिल जाना उस
वन की मिट्टी में…।
यही नियति है मेरी,
मैं बनफूल हूँ॥

परिचयअलका ‘सोनी’ का जन्म २३ नवम्बर १९८६ को देवघर(झारखंड)में हुआ है। बर्नपुर(पश्चिम बंगाल)में आपका स्थाई निवास है। जिला-पश्चिम वर्धमान निवासी अलका ‘सोनी’ की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) व बी.एड. है। लेखन विधा-कविता,लघुकथा व आलेख आदि है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हैं। आपको अनेक मंचों द्वारा सम्मान-पुरस्कार दिए गए हैं। लेखनी का उद्देश्य-आत्मसंतुष्टि व समाज कल्याण है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेरणापुंज रामधारी सिंह ‘दिनकर’ एवं ‘निराला’ हैं। इनका जीवन लक्ष्य-साहित्य में कुछ करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-‘हिंदी के प्रति लोगों का नजरिया बदला है और आगे भी सकारात्मक बदलाव होंगे।’

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