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निराला का वसंत

विनय कुमार सिंह ‘विनम्र’ 
चन्दौली(उत्तरप्रदेश)
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वसंत पंचमी स्पर्धा विशेष …..


राम रहा कौन था काल शिखर के मस्तक पर,
नव बसन्त पल्लव गुंजन के मधुमय-सा स्वर
कलुष दंड को भेद तिमिर को विच्छेदित कर,
अरुणोदय से अंतस भर तेजोमय शुभकर।

शुभ ज्ञान संकलित विस्तृत उर्जा से क्षर-अक्षर,
गीत सुकोमल नव पल्लव के सुरभित से स्वर
झरनों-सा झंकृत शीतल-सा नयन नीर भर,
करुण क्रन्दनों से भर विस्मृत विह्वल होकर।

वृहद गरल के ताप तटों को विकट विरल कर,
अमृतमय उर्जा से उर्जित नभ जल क्षितिकर
राम शक्ति पूजा से वाणी को आलोकित कर,
स्वर सरिता में भ्रमण कर रहा आज अमर नर।

रजनी में शशि के शांत स्वरों को छन्द बद्धकर,
अगणित तारामंडल से खुद को मंडित कर
भ्रमण कर रहा कौन साधकर वीणा का स्वर,
जलतरंग-सा उज्जवल स्वर निखर-निखर कर।

उन्नत ललाट तेजोमय आनन वृहद अजान कर,
भीमकाय तन शुभ उत्तम आत्मा को स्मृति धर।
भ्रमण कर रहे आज शिखर में ज्ञानी महा ‘निराला’,
समस्त लोक के शुभ अमृत को सार्थक पीने वाला॥