खुशियों की बुनाई

आकांक्षा चचरा ‘रूपा’कटक(ओडिशा)**************************************** मेरी माँ ने मेरे व्यक्तित्व को कुछ इस तरह बुना है,कभी प्यार भरी निगाहों सेतो कभी दुखती उंगलियों की आहों से,हर याद में उनका प्यार छिपा है।जिसे कभी मुस्कुराहट से भरा था,तो कभी नाराजगी से जड़ा थालेकिन अनुशासन की सलाइयां हमेशा थामी रहीं वो,न कभी प्यार ज्यादा होने दियान कभी नाराजगी ज्यादा … Read more