हवेली की दीवारें
रमेश चौरिया राही कवर्धा (छत्तीसगढ़) ****************************************************************************** ये रिसती दीवारें, ये फटी-फटी दरारें। अतीत को याद कर, बहाती आँसू की धारें॥ मगर कुछ कह नहीं पाता, अपनी कहानी,अपनी जुबानी। बिन बोले बताता है, देखो! आज इनकी निशानी॥ कभी गूंजती थी आवाजें, हँसी और किलकारियाँ। यहाँ पंछियों का बसेरा, और पशुओं का तबेला॥ नौकर-चाकरों का, होता था रेलम-रेला। … Read more