इन्क़लाब क्या है…

ओमप्रकाश मेरोठा बारां(राजस्थान) ********************************************************************* नसों में गर्म खून हर जवान,इन्क़लाब है, जो खींच ले जमीं को आसमान,इन्क़लाब है। दमन की ठोंकरों से उठ के आधियाँ जो बन गयी, वो दर्द और सितम की दास्तान इन्कलाब है। जमीन बंजारों की है तो हौंसले का हल चला, उगा दे इक नयी फसल किसान इन्क़लाब है। ये आग … Read more

कैसे कहूं,माँ हूँ…

ओमप्रकाश मेरोठा बारां(राजस्थान) ********************************************************************* मेरी आँखों का तारा ही मुझे आँखें दिखाता है, जिसे हर एक खुशी दे दी,वो हर गम से मिलाता है। जुबां से कुछ कहूं किससे कहूं कैसे कहूं,माँ हूँ, सिखाया बोलना जिसको,वो अब चुप रहना सिखाता है। सुला कर सोती थी जिसको वो रातभर जगाता है, सुनाई लोरियां जिसको वो अब … Read more