पतंग की डोर

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’इन्दौर(मध्यप्रदेश)************************************ मकर सक्रांति स्पर्द्धा विशेष…. नीलगगन में फिरती इतराती,पल-पल अपना मार्ग बदलतीकभी उड़ती,कभी गिरती,कभी सम्भल कर,थम जाती।कभी किसी को काटती,कभी खुद कट जाती हैपक्षी-सी लहराती,कभी सहारे,कभी बिना सहारेके हो जाती है,स्वछंद।तेज हवा के बहाव से बह जाती है,बंद हवा में गिर जाती हैउठता-गिरता यह जीवन,इस क्रम को,क्या खूब हमें समझाती है।रंग-बिरंगी यह … Read more