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पतंग की डोर

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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मकर सक्रांति स्पर्द्धा विशेष….

नीलगगन में फिरती इतराती,
पल-पल अपना मार्ग बदलती
कभी उड़ती,कभी गिरती,
कभी सम्भल कर,थम जाती।
कभी किसी को काटती,
कभी खुद कट जाती है
पक्षी-सी लहराती,
कभी सहारे,कभी बिना सहारे
के हो जाती है,स्वछंद।
तेज हवा के बहाव से बह जाती है,
बंद हवा में गिर जाती है
उठता-गिरता यह जीवन,
इस क्रम को,
क्या खूब हमें समझाती है।
रंग-बिरंगी यह ‘पतंग’,
दे जाती एक ‘दर्शन’
विपरीत परिस्थितियों में
कैसे संयम से जीना जीवन।
ऊँचाइयों पर रह कर भी,
पैर जमीं पर रखना
उड़ता-गिरता यह पल,
जीने की राह सिखाता।
रंग-रँगीली यह ‘पतंग’,
जीने की राह बताती है॥

परिचय-डॉ. वंदना मिश्र का वर्तमान और स्थाई निवास मध्यप्रदेश के साहित्यिक जिले इन्दौर में है। उपनाम ‘मोहिनी’ से लेखन में सक्रिय डॉ. मिश्र की जन्म तारीख ४ अक्टूबर १९७२ और जन्म स्थान-भोपाल है। हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाली डॉ. मिश्र ने एम.ए. (हिन्दी),एम.फिल.(हिन्दी)व एम.एड.सहित पी-एच.डी. की शिक्षा ली है। आपका कार्य क्षेत्र-शिक्षण(नौकरी)है। लेखन विधा-कविता, लघुकथा और लेख है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन कुछ पत्रिकाओं ओर समाचार पत्र में हुआ है। इनको ‘श्रेष्ठ शिक्षक’ सम्मान मिला है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। लेखनी का उद्देश्य-समाज की वर्तमान पृष्ठभूमि पर लिखना और समझना है। अम्रता प्रीतम को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाली ‘मोहिनी’ के प्रेरणापुंज-कृष्ण हैं। आपकी विशेषज्ञता-दूसरों को मदद करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी की पताका पूरे विश्व में लहराए।” डॉ. मिश्र का जीवन लक्ष्य-अच्छी पुस्तकें लिखना है।

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