श्रृंगार

अर्चना पाठक निरंतर अम्बिकापुर(छत्तीसगढ़) ***************************************************************************** नारी की शोभा बढ़े,लगा बिंदिया माथ, कमर मटकती है कभी,लुभा रही है नाथ। कजरारी आँखें हुई,काजल जैसी रात, सपनों में आकर कहे,मुझसे मन की बात। कानों में है गूँजती,घंटी-झुमकी साथ, गिर के खो जाए कहीं,लगा रही पल हाथ। हार मोतियों का बना,लुभाती गले डाल, इतराती है पहन के,सबसे सुंदर माल। कंगन … Read more