बोझ ज़िन्दगी का लेकर के

नरेंद्र श्रीवास्तव गाडरवारा( मध्यप्रदेश) ***************************************************************** धूल-धूसरित दुर्गम पथ ये जिस पर चलना नहीं गंवारा, बोझ ज़िन्दगी का लेकर के,चलते-चलते मैं तो हारा। पतझड़-सा मौसम छाया है, नीरसता का वातावरण है। कल-कारखानों का गुंजन क्यों ? खामोशी की लिए शरण हैll वीरानी-वीरानी दिखती है,जिधर नजर करती इशारा, बोझ ज़िन्दगी का लेकर के,चलते-चलते मैं तो हाराll घुटन … Read more