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भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय आपातकाल

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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२५ जून १९७५-यह तारीख भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में काला धब्बा हैI इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया था,जो २१ मार्च १९७७ तक यानि २१ महीने तक चलाI क्यों लगा आपातकाल और क्या रहा उसका असर ? आपातकाल की घोषणा कानून व्यवस्था बिगड़ने,बाहरी आक्रमण और वित्तीय संकट के हालत में की जाती हैI भारत में आपातकाल का मतलब था कि इंदिरा गांधी जब तक चाहें सत्ता में रह सकती थीI सरकार चाहे तो कोई भी कानून पारित करवा सकती थीI गुजरात और बिहार में शुरू हुए छात्र आंदोलन का नेतृत्व भारतीय स्वतंत्रता सेनानी लोकनायक जयप्रकाश नारायण कर रहे थेI इंदिरा के चुनावी मुकदमा हारने के बाद २५ जून १९७५ को रामलीला मैदान से उन्होंने इंदिरा गांधी को खुली चुनौती देते हुए इस्तीफा मांगाI १२ जून १९७५ को इलाहाबाद अदालत ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को खारिज कर दिया और छः साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दीI उन्हें मतदाताओं को घूस देने और सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल करने समेत कई मामलों का दोषी पाया गयाI इस फैसले से इंदिरा बेचैन थीI महंगाई चरम पर थीI खाने-पीने के दाम २० गुना बढ़ गए थे,जिसकी वजह से सरकार की आलोचना शुरू हो गई थीI कांग्रेस के अंदरूनी गुटों ने भी सरकार की नीतियों का विरोध शुरू कर दिया थाI इंदिरा सरकार चारों तरफ से पस्त थीI २५ जून और २६ जून की रात में तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के दस्तखत के साथ देश में आपातकाल लागू हो गयाI अगली सुबह ऑल इंडिया रेडियो पर इंदिरा ने कहा,- “भाइयों और बहनों,राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की हैI इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं हैI” २६ जून की सुबह होते-होते जयप्रकाश नारायण,मोरारजी देसाई,अटल बिहारी वाजपेयी,लाल कृष्ण आडवाणी,जॉर्ज फर्नांडिस समेत तमाम बड़े नेता गिरफ्तार किए जा चुके थेI कहा जाता है कि इतनी गिरफ्तारियां हुईं कि जेलों में जगह कम पड़ गईI आपातकाल का मतलब मीडिया की आजादी का छिन जाना थाI जेपी की रामलीला मैदान में हुई २५ जून की रैली की खबर देश में न पहुंचे,इसलिए दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित अखबारों के दफ्तरों की बिजली रात में ही काट दी गईI प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने पांच सूत्री कार्यक्रम पर काम करना शुरू कर दियाI इसमें नसबंदी,वयस्क शिक्षा,दहेज प्रथा को खत्म करना, पेड़ लगाना और जाति प्रथा उन्मूलन शामिल थाI १९ महीने के दौरान देशभर में करीब ८३ लाख लोगों की जबरदस्ती नसबंदी करा दी गईI लोकतंत्र में २ स्तंभ महत्वपूर्ण होते हैं-एक लिखने की आजादी और दूसरा बोलने की आजादी। मान लीजिए आज आपकी यह दोनों आजादी छिन जाएगी,तो आप क्या करेंगे। यह सोचकर भी आश्चर्य होता है कि अपने आजाद देश में ऐसा हुआ था,लेकिन इस सच को अब पीढ़ी दर पीढ़ी याद रखेगी। आखिर कैसे एक चुनी हुई सरकार अचानक आपातकाल लगाने का निर्णय लेती है। उस समय तो देश में न कहीं से हमले का डर था,न ही आर्थिक हालात खराब थे,जिसको लेकर सरकार बाध्य होती कि आपातकाल लगा देना चाहिए। गूंगी गुड़िया से अचानक तानाशाह के रूप में अवतरित इंदिरा गांधी ने भयावह निर्णय ले ही लिया था। तानाशाही भी इतनी कि,विरोध में एक शब्द भी इंदिरा के कान में गए तो उसको जेल तो जाना ही पड़ेगा। उनके व्यक्तित्व का यह भयावह पक्ष देश के लिए काला स्याह बनकर सामने आया,जिससे जनता कराह रही थी। उस समय आज की तरह न तो सोशल मीडिया का दौर था कि सरकार के निर्णय के साथ ही हमें उसके पक्ष और विपक्ष पर आमजन की राय तुरंत देखने को मिलती। आज संतोष की बात है,कि तकनीक इतनी तेज हो गई है कि कोई भी सरकार हो,जनविरोधी फैसले पर उन्हें जाँच-पड़ताल से तो गुजरना ही पड़ेगा,जिससे उन्हें पता रहे कि उनकी सत्ता अगर आ सकती है,तो जा भी सकती है। आज के दौर में कोई भी चीज स्थाई नहीं है। यही आपातकाल शासनतंत्र के लिए सबसे बड़ा सबक बनकर रहेगा। हमेशा राजनीतिक शक्ति तो सत्ता में आए दलों के पास निहित होती है। इस आपातकाल के माध्यम से जनता और मीडिया को जबरन घसीटा गया। इंदिरा के निशाने पर तो थे विरोधी दल। उनको साधते-साधते जनता और मीडिया को भी सबक सिखाने में इंदिरा ने कोई कसर नहीं छोड़ी,पर तानाशाह इंदिरा भूल गई कि आपके विरोध में खड़े राजनीतिक दल तो हैं ही विरोधी क्योंकि आप सत्ता में हैं,लेकिन जनता और मीडिया आपके विरोधी नहीं थे। बस आपने गलत निर्णय लिया,तो विरोध में आवाज बुलंद की। भले ही जनता और मीडिया मूक हो,लेकिन मूकदर्शक नहीं रह सकते। इसका एहसास सभी राजनीतिक दलों को होना चाहिए।

परिचय–गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”

 
 

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