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समय चक्र

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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शाम को वो ढल जाता है…
जो सूरज सुबह निकलता है,
चक्र समय का चलता है।

सुख की छाँव में बैठा इंसां…
कभी दुःखों में जलता है,
चक्र समय का चलता है।

कोई मखमल रेशम पहने…
गुदड़ी में कोई पलता है,
चक्र समय का चलता है।

छप्पन भोग सजी है थाली…
कोई सूखी रोटी को तरसता है,
चक्र समय का चलता है।

मुरझा जाता पतझर में वो…
फूल बसन्त में खिलता है,
चक्र समय का चलता है।

मिट्टी में जो मिट जाता है…
वह बीज ही वृक्ष बनता है,
चक्र समय का चलता है।

कहीं सूखा पड़ा धरती पर,
कहीं मूसलाधार बरसता है,
चक्र समय का चलता है।

विधि का विधान किसी के..
टाले भला कब टलता है,
चक्र समय का चलता है।

मात-पिता की सेवा करना…
आशीर्वाद उन्हीं का फलता है।
चक्र समय का चलता है,
चक्र समय का चलता है…॥

परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।