डॉ.विद्यासागर कापड़ी ‘सागर’
पिथौरागढ़(उत्तराखण्ड)
**********************************
जिसके बल से भवन निराले,
जिसके बल से है खाना।
जिसके स्वेद कणों के बल पर,
पर अधरों पर हो गाना॥
जिसका तप ही बंजर भू पर,
लाता है नित हरियाली।
जिसका श्रम ही तो हम सबके,
जीवन का भी है माली॥
कभी न मिल पाती रोटी तो,
कभी न मिलता पानी है।
मजदूरों की सदा-सदा से,
बस ये करुण कहानी है॥
जिसके बल से वाहन बनते,
करते और सवारी हैं।
जिसने जीता है मौसम को,
भूख-प्यास सब मारी है॥
जिसका भी उपयोग करें हम,
नींव सदा मजदूर हैं।
फिर क्यूँ इतने फटेहाल वो,
और दिखते मजबूर हैं॥
दी औरों की मुस्कानों को ,
अपनी भरी जवानी है।
मजदूरों की सदा-सदा से,
बस ये करुण कहानी है॥
इनके श्रम की बुनियादों पर,
रहते हैं राजा-रानी।
जिनकी बाँहों के बल से ही,
चलती रहती है घानी॥
तज देते हैं अपने घर को,
औरों का घर भरने को।
पी लेते हैं अपनी पीड़ा,
पर की पीड़ा हरने को॥
फौलादी बल भरा हुआ है,
कहीं न इनका सानी है।
मजदूरों की सदा-सदा से,
बस ये करुण कहानी है॥
कभी न मिल पाती रोटी तो,
कभी न मिलता पानी है।
मजदूरों की सदा-सदा से,
बस ये करुण कहानी है॥
परिचय-डॉ.विद्यासागर कापड़ी का सहित्यिक उपमान-सागर है। जन्म तारीख २४ अप्रैल १९६६ और जन्म स्थान-ग्राम सतगढ़ है। वर्तमान और स्थाई पता-जिला पिथौरागढ़ है। हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले उत्तराखण्ड राज्य के वासी डॉ.कापड़ी की शिक्षा-स्नातक(पशु चिकित्सा विज्ञान)और कार्य क्षेत्र-पिथौरागढ़ (मुख्य पशु चिकित्साधिकारी)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत पर्वतीय क्षेत्र से पलायन करते युवाओं को पशुपालन से जोड़ना और उत्तरांचल का उत्थान करना,पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के समाधान तलाशना तथा वृक्षारोपण की ओर जागरूक करना है। आपकी लेखन विधा-गीत,दोहे है। काव्य संग्रह ‘शिलादूत‘ का विमोचन हो चुका है। सागर की लेखनी का उद्देश्य-मन के भाव से स्वयं लेखनी को स्फूर्त कर शब्द उकेरना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-सुमित्रानन्दन पंत एवं महादेवी वर्मा तो प्रेरणा पुंज-जन्मदाता माँ श्रीमती भागीरथी देवी हैं। आपकी विशेषज्ञता-गीत एवं दोहा लेखन है।